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Health

असामियक खान पान, और तनाव दिल की बीमारियों का कारण

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 28 2019 12:25AM | Updated Date: Jun 28 2019 12:25AM
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नई दिल्ली। देश में युवाओं की अनियमित जीवन शैली, गलत खान पान, घरेलू और कार्यस्थल का तनाव तथा शारीरिक श्रम का अभाव उन्हें दिल तथा मुधमेह जैसी घातक बीमारियों का शिकार बना रहा है जिसके चलते देश को श्रम उत्पादन में काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोवॉस्कुलर सर्जन डॉ.  प्रोफेसर एनएन खन्ना ने गुरूवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में देश में युवाओं और अन्य लोगों की कार्डियोवॉस्कुलर  डिसीज की समस्याओं पर कहा कि भारत इस समय दिल की बीमारियों के बारे में विश्व में सबसे आगे हैं और यहां तीस वर्ष के बाद युवाओं को यह बीमारी घेर रही है। पहले यह बीमारी पचास के बाद सुनने को मिलती थी लेकिन अधिक आरामतलबी और एक्सरसाइज नहीं करने से वे मोटोपे की चपेट में आकर इन बीमारियों का घर बनते जा रहे हैं।
 
उन्होंने कहा कि पहले ग्रामीण क्षेत्रों में दिल की बीमारियां कम होती थी लेकिन वहां भी शहरी सुविधाएं होने और मशीनीकरण हो जाने से लोग शारीरिक श्रम कम कर रहे हैं और वहां भी यह बीमारी पांव पसारती जा रही है। इसके साथ साथ मधुमेह भी अपना असर दिखा रही है क्योंकि दोनों बीमारियां एक दूसरे की करीबी है और दोनों एक साथ मिलकर जानलेवा साबित हो रही है। उन्होंने बताया कि दिल और धमनियों की बीमारियों का असर पूरे शरीर पर पड़ता है और इनकी वजह से व्यक्ति नपुंसकता का शिकार हो जाता है क्योंकि जननेंद्रिय की रक्त वाहिकाओं में आई रूकावट के कारण रक्त का समुचित प्रवाह नहीं हो पाता और फिर यह बीमारी सामने आती है। डा खन्ना ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार भारत में होने वाली एक चौथाई मौतों  का कारण कार्डियोवॉस्कुलर रोग ही हैं। वास्तव में भारत में 1,00,000 की आबादी पर 272 मौतें इन्हीं रोगों के कारण होती हैं, यह दर विश्वस्तरीय औसत 235 की तुलना में बहुत अधिक है। इश्केमिक हार्ट डिज़ीज़(आईएचडी) और मस्तिष्क आघात(स्ट्रोक) भारत में सीवीडी के कारण होने वाली 83 फीसदी मौतों का कारण हैं।
 
 यह रोग अमीर एवं गरीब दोनों वर्गों को प्रभावित करते है  उन्होंने पिछले कुछ दशकों के दौरान देश में आईएचडी के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कहा ‘‘शहरी भारत में 1960 में आईएचडी की दर 2 फीसदी थी, जो 2013 तक सात गुना बढ़कर 14 फीसदी हो गई है। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों  में यह 1970 में 1.7 फीसदी थी, जो चार गुना बढ़कर 2013 में 7.4 फीसदी तक पहुंच गई। उन्होंने बताया कि दक्षिणी एशियाई आबादी में कम उम्र में मायोकार्डियल इन्फ्रैक्शन के भारतीय राज्यों में इश्केमिक हार्ट डिज़ीज़ की तुलना करें तो केरल, पंजाब,तमिलनाडु और महाराष्ट्र में यह दर सबसे ज़्यादा पाई गई है।’’ पेरीफरल आर्टरी डिसीज(पीएडी) रोगों पर रोशनी डालते हुए डॉ. खन्ना ने कहा ‘‘एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण भारत की शहरी आबादी में 20 साल से अधिक उम्र के लोगों  में पीएडी की दर 3.2 फीसदी है। 
 
 डॉ.  खन्ना ने बताया ‘‘भारतीय व्यस्कों में उच्च रक्त चाप (हाइपरटेंशन) की अनुमानित दर 30 फीसदी है जिसमें से शहरी भारत में यह दर 34 फीसदी और ग्रामीण भारत में 28 फीसदी है। हाइपरटेंशन से पीड़ित मरीज़ों की संख्या 2000 के 11.8 करोड से दुगनी होकर 2025 में 21.35 करोड तक पहुंचने का अनुमान है। भारत में पिछले दो दशकों में औसत रक्त चाप बढ़ा है, साथ ही भारत के शहरी क्षेत्रों में डायबिटीज़ मेलिटस की दर पिछले 20 सालों में नौ फीसदी से दोगुना बढ़कर 17 फीसदी हो गई है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 2 फीसदी से चार गुना बढ़कर नौ फीसदी तक पहुंच गई है। एक अनुमान के अनुसार डायबिटीज़ मेलिटस से पीड़ित मरीजों की संख्या 2030 तक बढ़कर 10.1 करोड के चिंताजनक आंकड़े तक पहुंच जाएगी।’ उन्होंने बताया कि शुक्रवार से  राजधानी में 11वां एशिया पैसिफिक वास्कुलर  इंटरवेंशन कोर्स सम्मेलन का आयोजन हो रहा है जिसमें देश विदेश के 600 से अधिक कार्डियोवास्कुलर विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे।
 
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