चंडीगढ़। राजयोगिनी ,शिक्षक ब्रहमकुमारी शिवानी ने कहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में भारत डिप्रेशन के मामले में पहले नंबर पर है । यदि समय रहते मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान न दिया गया तो देश में इस बीमारी का भयावह रूप धारण कर लेगी । बहन शिवानी ने कल यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुये कहा सभी का ध्यान केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर रहता है । लोग समझते हैं कि शरीर ही मन को कंट्रोल करता है लेकिन सच तो यह है कि मन का प्रभाव ही शरीर पर पड़ता है । लोगों की मानसिक स्थिति दिन ब दिन कमजोर होती जा रही है क्योंकि हमने अपनी मान्यता कुछ इस तरह बना ली है कि दुख , गुस्सा , चिंता हमें अपने मूल संस्कार लगने लगे हैं ,जबकि हमारी मूल संस्कार तो शांति ,पवित्रता , प्रेम, करूणा ,सत्य ,आनंद और खुशी है । उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में विकारों में फंस कर मनुष्य मूल संस्कारों को भूल गया है । परमात्मा को याद करते समय बुद्धि भटकती है तथा स्थिर मन -बुद्धि न होने से खुशी गायब हो जाती है । अब हमें अपने मूल संस्कारों को इमर्ज करने की जरूरत है । आत्मिक तथा असली स्वरूप में रहने का नाम ही ध्यान ,योग है ।
उन्होंने बताया कि रोजमर्रा में जब हम किसी से मिलते हैं तो कहते हैं ‘क्या हालचाल है ,वस्तुत: जैसा मन होगा वैसी ही चाल हो जाती है । हाल हमेशा खुशहाल तथा चाल फरिश्ते जैसी होनी चाहिये । यह हरेक की वास्तविकता होनी चाहिये लेकिन यदि हमारी मन:स्थिति बाहरी बातों अर्थात दूसरों पर निर्भर होगी तो यह कभी संभव नहीं होगा क्योंकि यह तो पक्का है कि परिस्थिति कभी पूरी तरह हमारे अनुरूप नहीं होगी । कोई भी बाहरी वस्तु हमें स्थायी सुख नहीं दे सकती । उनके अनुसार हर माता पिता अपने बच्चे से प्रेम करते हैं, इसलिये कहते हैं कि हमें बच्चे की कोई फिक्र नहीं । समझने वाली बात यहां ये है कि फिक्र तथा केयर में अंतर है । केअर में सकारात्मकता का भाव है जबकि चिंता में नकारात्मकता का । आज जिंदगी में सब साधन होते हुये भी हर व्यक्ति अंदर से खाली है क्योंकि हमने अपनी खुशी दूसरों पर डिपेंडेंट कर दी ।
हमने अपने को दूसरों की प्रतिक्रिया का गुलाम बना दिया है । वो खुश तो हम खुश ,वो नाराज तो हम भी नाराज । कभी तो हम अपने नक्षत्र को कोसते हैं कभी अपने भाग्य को । ब्रहमकुमारी शिवानी ने कहा कि औरों की नकल करके हमें अपने संस्कार नहीं बनाने । मेरे मन का रिमोट मेरे पास ही होना चाहिये अर्थात हमें इमोशनली इंडिपेंडेंट नहीं होना है । दूसरों के संस्कार में उलझकर हमारी आत्मिक उन्नति संभव नहीं । उन्होंने पांच संस्कार बतायें जिनमें पहला जिसे आत्मा पिछले जन्म से लेकर आती ,दूसरे परिवार से मिलेत ,तीसरे समाज से मिलते । इच्छा शक्ति से आत्मा के संस्कार बदले जा सकते हैं । आत्मा के मूल संस्कार ज्ञान ,शांति ,पवित्रता , प्रेम ,आनंद हैं जो हम भूल गये हैं ।