20 Apr 2024, 02:20:07 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-सुशील कुमार सिंह
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


वर्ष 2012 से टाटा समूह की चेयरमैनशिप संभाल रहे व्यावसायिक कुशलता के धनी सायरस मिस्त्री जब उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए तो उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। चार वर्ष में ही जिस शख्स को टाटा समूह का भविष्य बताया जा रहा था उसे इस तरह बेदखल किया जाना यह साफ करता है कि इस समूह की साख और शख्सियत को लेकर फिलहाल कोई समझौता नहीं हो सकता। अब यह निष्कासन एक हकीकत है और सेवानिवृत्त हो चुके रतन टाटा ने एक बार अंतरिम तौर पर इस समूह को अपने हाथों में ले लिया है। देखा जाए तो सायरस मिस्त्री को हटाए जाने के पीछे कारण बीते चार वर्षों में समूह की कई कंपनियों के प्रदर्शन को माना जा रहा है।

गौरतलब है कि जब सायरस को चेयरमैन बनाया गया था तब इस समूह का कारोबार 100 अरब डॉलर का था जिसे 2022 तक 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। आरोप है कि सायरस के आने से कंपनी की रफ्तार सुस्त हुई और कारोबार उस गति से आगे नहीं बढ़ा जैसी की अपेक्षा की गई थी। गौरतलब है कि लंदन बिजनेस स्कूल से प्रबंध की डिग्री लेने वाले सायरस मिस्त्री इतने भी कच्चे खिलाड़ी नहीं थे पर टाटा जैसे समूह की उम्मीदों पर खरा उतरना वाकई में आसान बात भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि सायरस मिस्त्री की दक्षता और योग्यता में कोई कमी है। बड़े घराने के सायरस देश की सबसे बड़ी निर्माण कंपनी शापूरजी पालोनजी के मालिक पालोनजी मिस्त्री के बेटे हैं। इस परिवार की टाटा समूह में सर्वाधिक हिस्सेदारी 18.8 फीसदी की है, साथ ही वे प्रबंध निदेशक भी रह चुके हैं। जाहिर है कि इन सब खूबियों के चलते रतन टाटा की दृष्टि अपने भविष्य के उत्तराधिकारी पर पड़ी थी। मगर वक्त के साथ मनचाहे नतीजे न होने से ये कड़े फैसले लेने पड़े।
एक लिहाज से देखा जाए तो टाटा को फिर एक नए रतन की तलाश है जो इनके समूह को मन माफिक ऊंचाइयों पर ले जा सके। जमशेदजी टाटा ने जब इस समूह की यात्रा 1887 में शुरू की थी तब उन्हें भी शायद यह एहसास नहीं रहा होगा कि 21वीं सदी के दूसरे दशक तक यह समूह इस प्रकार की समस्याओं में उलझेगा। पहले चेयरमैन से लेकर सायरस मिस्त्री तक के बीच क्रमश: दोराबजी टाटा, सर एन.बी. सकलत्वला समेत जे.आर.डी. टाटा और रतन टाटा का नाम आता है। जब रतन टाटा ने इस समूह को सायरस मिस्त्री के हवाले किया था तब टर्नओवर छह अरब डॉलर से 100 अरब डॉलर तक किया था। गौरतलब है कि 1991 में जब जे.आर.डी. टाटा के बाद रतन टाटा समूह के चेयरमैन बने थे, तब कारोबार महज छह अरब डॉलर का था, जिसे 2012 तक अप्रत्याशित ऊंचाई पर पहुंचाने का काम इन्हीं के द्वारा संभव हुआ। उत्तराधिकार लेते समय सायरस मिस्त्री को भी यह स्पष्ट था कि एक दशक के भीतर 100 अरब के टर्नओवर वाले इस समूह को पांच सौ पर पहुंचाना है, पर सुस्ती और सटीक संदर्भ के नाकाफी होने के चलते यह एहसास भी शीघ्र ही होने लगा कि सायरस मानकों पर शायद खरे नहीं उतरेंगे जिसका नतीजा सबके सामने है। देखा जाए तो सायरस मिस्त्री कंपनियों और उनका नेतृत्व करने वालों से नतीजे पर आधारित प्रदर्शन को खासी तरजीह दे रहे थे। यहां तक कि कोरस को खरीद कर दुनिया को चौंकाने वाले टाटा स्टील को भी नजरअंदाज कर रहे थे। खास यह भी है कि टाटा स्टील की ब्रिटेन की इकाई को बेचने का फैसला भी इनके खिलाफ गया है। बावजूद इसके इनके नेतृत्व में टाटा कन्सल्टेंसी और जगुवार और लैंडरोवर ने बेहतर प्रदर्शन किया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि सायरस, रतन टाटा से इन दिनों दूर भी चले गए थे। फिलहाल बीते 24 अक्टूबर को टाटा समूह के अंदर जो घटना घटी वह काफी अप्रत्याशित भी थी।

कारोबार की दुनिया में बड़ा नाम और शख्सियत रखने वाले टाटा समूह के इस घटनाक्रम को देखते हुए शेयर बाजार में भी काफी उतार-चढ़ाव रहा। टाटा की कंपनियों के शेयरों में बीते मंगलवार को तीन फीसदी की गिरावट देखी गई। जिस तर्ज पर सब कुछ हुआ है वह कुछ को हैरत में भी डालता है। इसी बीच टाटा सन्स चेयरमैन की बर्खास्तगी का मामला कोर्ट भी पहुंच गया है। टाटा समूह के निकायों ने सर्वोच्च न्यायालय, मुंबई उच्च न्यायालय और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने सायरस मिस्त्री द्वारा चेयरमैन के पद से हटाए जाने के मामले में राहत मांगने के विरुद्ध कैविएट दाखिल कर दी गई। इससे साफ है कि मिस्त्री को किसी भी प्रकार की राहत देने से पहले टाटा सन्स को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाए। कैविएट किसी भी पक्ष द्वारा दाखिल एक नोटिस होता है जिसे किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई का डर होता है, तो वह इस नोटिस के जरिए कार्रवाई किए जाने से पहले नोटिस की मांग करता है। सायरस मिस्त्री ने कोई कैविएट दाखिल नहीं किया है। फिलहाल आगे क्या होगा अभी कुछ कह पाना संभव नहीं है, हालांकि बर्खास्तगी के समय से ही यह कयास लगाया जा रहा था कि सायरस टाटा सन्स के बोर्ड के इस फैसले को चुनौती दे सकते हैं। सायरस मिस्त्री को लेकर कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वे कड़े फैसले कर रहे थे। 
कारोबारी तथा कल-कारखानों की दुनिया माया के खेल से जूझती है और यहां सिक्कों की खनक और स्पर्धा में सबसे आगे रहने की होड़ रखने वाला ही संतुलन बैठा पाता है। कारोबार के शीर्ष पर बैठा शख्स जब बदलता है तो उसकी शख्सियत का असर पूरे कारोबार पर पड़ता है। 22 सालों में रतन टाटा ने जिस टाटा समूह को ऊंचाई देने में दिन-रात एक किया, उसी अनुपात में सायरस जैसी शख्सियत शायद खरी नहीं उतरी। ऐसा नहीं है कि चेयरमैनशिप वाले शख्स को पहली बार हटाया गया हो या पुराने चेयरमैन ने पहली बार कुर्सी संभाली हो। ऐसे कई कारोबारी समूह है जिनके चेयरमैन की दोबारा वापसी हुई है। वर्ष 2011 में इन्फोसिस से रिटायर हुए नारायण मूर्ति ने भी कंपनी की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए जून 2013 में वापसी की थी। एप्पल के स्टीव जॉब्स ने 16 सितंबर, 1985 को बोर्ड से विवाद के चलते चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था परंतु 1997 में अंतरिम सीईओ के तौर पर एक बार फिर वापसी की। स्टारबक्स के सीईओ होवार्ड शुल्ज ने 2000 में कंपनी छोड़ी थी लेकिन गिरते प्रदर्शन को देखकर 2008 में फिर वापसी की थी।

इन बातों से यह संदर्भित होता है कि कारोबार का रसूख जब प्रदर्शन के मामले में गिरावट की ओर जाता है तो पुराना शख्स, नए शख्स को स्थानांतरित कर देता है। यह उदाहरण इसलिए भी सटीक है, क्योंकि कारोबार का क्षेत्र कमतर को बर्दाश्त नहीं करता। फिलहाल सायरस के रुखसत कर देने के बाद अगला चेयरमैन कौन होगा यह सवाल भी तैरने लगा है और अगले चार महीने तक इसकी खोज जारी रहेगी। इसमें रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा का नाम भी हो सकता है। 2012 में भी इस पद की दौड़ में ये शामिल थे। नोएल टाटा पलोनजी मिस्त्री के दामाद भी हैं। भीड़भाड़ की दुनिया में सुर्खियों से दूर रहने वाले रतन टाटा ने जिस तरह टाटा सन्स को ऊंचाई देने का काम किया था, उसे देखते हुए साफ है कि चेयरमैन ऐसा शख्स होगा जो समूह की साख और उसकी शख्सियत के लिए कहीं अधिक बेजोड़ सिद्ध हो।

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