-वीना नागपाल
उनकी वाट्स एप पर मित्रता हुई। युवती और युवक एक ही बिल्डिंग में रहते थे। आते-जाते लगभग रोज ही दोनों की मुलाकात होती। कुछ निकटता बढ़ी तो दोनों ने मोबाइल नंबर एक-दूसरे को दे दिए। वॉटसअप पर संदेश आने लगे। किसी-किसी दिन फोन पर दोनों की बातचीत भी हो जाती थी। इस तरह की साधारण बातचीत का युवती ने कोई विरोध नहीं किया। कई बार आते-जाते मोबाइल के संदेशों को लेकर भी बात होती थी कि कौन सा संदेश रूचिकर था। कभी वॉटसअप पर भेजे गए चुटकले पर जब दोनों आमने-सामने मिलते तो उसे याद कर इकट्ठे हंस भी लिया करते। पर, बात यहीं तक नहीं रूकी।
लिफ्ट में आते-जाते वह युवती की खूबसूरती को लेकर प्रशंसा करने लगा और बेवजह कमेंट करने लगा। युवती ने इसकी अनदेखी की। पर, एक दिन तो हद हो गई जब उस युवक ने लिफ्ट में उस युवती से शारीरिक छेड़खानी कर दी। यह तो अकारण की गई जबरदस्ती थी और अगर वह इसे अनदेखा कर देती तो पता नहीं युवती के बारे में वह क्या समझ बैठता? उसने युवक को चेतावनी दी। परंतु ऐसी मानसिकता वाले युवक (मर्द) ऐसी चेतावनियों पर रूकते नहीं है। इस बीच युवती ने वॉटसअप पर भेजे गए संदेशों की अनदेखी करना शुरु कर दिया। पर, एक दिन वह युवक लिफ्ट में उसी युवती को मिला और सीधे-सीधे युवती से शारीरिक छेड़छाड़ शुरु करने का दु:साहस किया अब बात की हद हो गई थी। युवती ने पुलिस में शिकायत कर दी। युवक को गिरफ्तार कर लिया गया।
मामला अदालत तक पहँुचा। अदालत ने युवक को जमानत देने से इंकार कर दिया। इस मामले पर अदालत की टिप्पणी बहुत तल्ख थी। अदालत ने कहा- युवती द्वारा वॉटसअप पर संदेश लेने और देने का मतलब यह तो नहं कि युवक को छेड़खानी की आजादी मिल गई है। आगे कहा...जब एक लड़की अथवा युवती किसी परिचित के साथ दोस्ती भरे लहजे से बात भी कर ले तो उसे उसकी मौन सहमति मान लिया जाता है। यहाँ भी यही हुआ है। अदालत ने कहा कि यदि यही दोस्ती दो युवकों के बीच होती है तब लोगों के मन में गलत विचार क्यों नहीं आते? आरोपी सामान्य बातचीत को गलत समझ बैठा।
यही तो मुसीबत है जब से युवतियां बाहर निकली हैं वह वहां मित्रों की तलाश करती हैं। बिल्कुल सामान्य व साधारण तथा स्वभाविक विचारों के आदान-प्रदान के लिए वह यह व्यवहार करती हैं। उन्हें लगता है कि जैसे वह एक महिला मित्र पाकर खुश होती हैं उनके साथ संदेशों का भेजना और लेना भी सहजता से होता है वैसे युवक मित्रों के साथ भी किया सकता है। कुछ भी गलत मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। तब ऐसा कैसे संभव होता है कि एक युवक और युवती या एक महिला व पुरुष के बीच की बातचीत से प्राय: युवक या पुरुष यह मतलब निकाल लेता है कि इस युवती या महिला के साथ किसी भी हद तक आगे बढ़ा जा सकता - इतना आगे कि उसके आदर-सम्मान को भी ठेस पहँुचा दी जाए।
इसी सीमा पर एक फिल्म बनीं है- ‘‘पिंक’’ जो यह बहुत गहराई दिखाती है कि युवती का भी अपनी एक सम्मान की रेखा होती है। यदि वह पुरुष के साथ बैठी है और बातचीत कर रही है तो पुरुष को यह अधिकार तो क्या छूट भी नहीं मिल जाती कि वह भूखे भेड़िए की तरह उस पर लपक पड़े। उस युवती ने यह संकेत तो कभी नहीं दिया कि यदि उसकी किसी के साथ लंबे समय तक बात-चीत की मैत्री हो तो वह उससे शारीरिक अशिष्टता पर ही उतर आए। यह किसी भी तरह बर्दास्त नहीं किया जा सकता। परंतु पुरुष अपनी हदें, अब तक नहीं पहचान रहे हैं या फिर पहचानने में बहुत समय लगा रहे हैं। पुरुषों को ‘पिंक’ फिल्म अवश्य देखना चाहिए नहीं तो वह नीले रंग में ही रंगे रहेगें।