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एकाकी परिवारों की घोंसलों की ओर वापसी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 21 2016 11:24AM | Updated Date: Aug 21 2016 11:24AM
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-वीना नागपाल

वह पति-पत्नी और उनके दोनों बच्चे अपने गृह नगर से दूर एक महानगर में रह रहे थे। पति अच्छे प्रतिष्ठित पद पर था और उनका परिवार न केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ था बल्कि उनके घर में अन्य सुविधाएं भी प्रचुर मात्र में थीं। आधुनिक सुविधाओं की आजकल सूची भी तो बहुत लंबी है। जहां पहले घर में एक टीवी होता था वहीं अब बच्चों के कमरे में अलग और गेस्ट रूम में अलग से टीवी लगा होता है, परंतु अचानक उन्हें कंपनी की ओर से अपने गृह नगर में जाने के लिए कहा गया, क्योंकि वहां कंपनी को स्वयं को स्थापित करने की एक नई योजना लागू करना थी। यह उन दंपत्ति के लिए बहुत अचंभित करने वाली व्यवस्था थी। चूंकि कंपनी से उन्हें दोगुनी आर्थिक सुविधा मिल रही थी इसलिए कंपनी को छोड़ा भी नहीं जा सकता था। उन पति-पत्नी ने तैयारी कर ली और अपने होम टाउन वापस आ गए।

यह स्थिति उनके माता-पिता को भी अस्त-व्यस्त कर रही थी। कहां तो बुजुर्गों ने अपने अकेलेपन से सामंजस्य बैठा लिया था पर, अब तो उनके बेटे-बहू को उनके साथ रहना था। एक ही शहर में वह अलग मकान तो लेकर रह नहीं सकते थे। बेचारे माता-पिता को समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे एडजस्ट करें। सभी कुछ तो उनके लिए उलट-पुलट गया था। एक और लगभग ऐसी ही घटना हुई। उन अधेड़ावस्था के पति-पत्नी के बेटा-बहू विदेश में रहते थे। पेरेंट्स अपना जीवन सहजता से बिता रहे थे। फोन पर प्राय: बात होती थी और चैटिंग भी तो आजकल हो जाती है इतना ही पर्याप्त था दोनों के लिए। पर, बेटे के यहां संतान हुई। उसने लगातार अपने माता-पिता पर दबाव बनाया कि वह छोटे बच्चे की देखभाल के लिए वहां आ जाएं और लगभग छह महीने के या इससे अधिक समय के लिए उनके पास रहें। मां-बाप परेशान हो गए। वह तो अपना बहुत नियमित और लगभग सुविधाजनक समय बिता रहे थे। अब अचानक एक पराए देश में जाना और भाषा के आने से परिचितों से न मिलने के कारण उनको समय काटना कितना भारी लगेगा? परंतु उनके पास इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था कि वह अपनी इच्छा व चाव से बनाए घर को ताला लगाते और विदेश चले जाते। कई बार आजकल ऐसा भी होने लगा है कि विदेश की नौकरी छोड़कर युवा दंपति अपने देश लौट आते हैं। यह सच है कि उनके अपने घर-परिवार में लौट आना बुजुर्ग माता-पिता को बहुत ही अच्छा लगता है पर, उन्हें नए सिरे से स्वयं को बदलना पड़ता है। उनके रूटीन में बहुत बदलाव आ जाता है। वह कभी-कभी विचलित भी हो जाते हैं कि कहीं उनसे कोई ऐसा व्यवहार न हो जाए कि उम्र के इस मोड़ पर बेटा-बहू उन्हें गलत समझने लगें। अब तो कई बार ऐसा भी होने लगा है कि विवाहित बेटी अपने वैवाहिक संबंधों के विच्छेद के कारण बच्चों समेत बुजुर्ग माता-पिता के घर आ जाती है। बेटी और उसके बच्चे तो उन बुर्जुग माता-पिता को बहुत प्रिय होते हैं पर, बिल्कुल नए सिरे से इस आपात परिस्थिति से सामंजस्य बैठा पाना आसान नहीं होता। वह अस्त-व्यस्त हो जाते हैं।

जीवन के नियमित और निर्बाध प्रवाह में युवा बच्चों के वापस लौटकर आने से बुजुर्गों को कई समस्याओं को एक नए तरीके से झेलना या यंू कहें कि सहन करना पड़ता है, यह आसान तो कतई नहीं होता। इस तरह वह अपने रूटीन में एक परिवर्तन लाने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिसे इस उम्र में लाना आसान नहीं होता। इस समस्या का हल तो यही है कि किन्हीं भी कारणों से यदि बच्चे अपने घोंसले में वापस लौट कर आते हैं तो अब वही सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश अधिक करें। एक तो उनकी युवा उम्र उनकी सहायक है दूसरा बुजुर्गोंं की शक्ति तो क्षीण हो चुकी होती है ऐसे में युवा उनकी क्षमता की मजबूरी समझ कर उन्हें इतने अधिक अवसर दें जिनके कारण वह उनमें वापस आ जाने से खुशी व आनंद पाएं।

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