जलपाईगुड़ी। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में रहने वाली कल्पना को 2013 में भारतीय फुटबॉल संघ द्वारा आयोजित महिला लीग के दौरान दाहिने पैर में चोट लगी थी। उन्होंने कहा, मुझे इससे उबरने में एक साल लगा। मुझे किसी से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। इसके अलावा तब से मैं चाय का ठेला लगा रही हूं। उनके पिता चाय का ठेला लगाते थे, लेकिन अब वह बढ़ती उम्र की बीमारियों से परेशान है।
उन्होंने कहा, सीनियर राष्ट्रीय टीम के लिए ट्रायल के लिए मुझे बुलाया गया था, लेकिन आर्थिक दिक्कतों के कारण मैं नहीं गई। मेरे पास कोलकाता में रहने की कोई जगह नहीं है। इसके अलावा अगर मैं गई तो परिवार को कौन देखेगा। मेरे पिता की तबीयत ठीक नहीं रहती। कल्पना पांच बहनों में सबसे छोटी हैं। उनमें से चार की शादी हो चुकी है और एक उसके साथ रहती है। उनकी मां का चार साल पहले निधन हो गया। अब परिवार कल्पना ही चलाती हैं। कल्पना का कहना है कि मेरा आज भी एक ही सपना है कि मैं अपने देश के लिए फिर फुटबॉल खेलूं।
चार अंतरराष्ट्रीय मैच खेले, अब देती हैं कोचिंग
कल्पना ने 2008 में अंडर-19 फुटबॉलर के तौर पर चार अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। अब वह 30 लड़कों को सुबह और शाम कोचिंग देती हैं। वह चार बजे दुकान बंद करके दो घंटे अभ्यास कराती हैं और फिर दुकान खोलती हैं। कल्पना ने कहा, लड़कों का क्लब मुझे 3000 रुपए महीना देता है जो मेरे लिए बहुत जरूरी है। कल्पना ने कहा कि वह सीनियर स्तर पर खेलने के लिए फिट है और कोचिंग के लिये अनुभवी भी। उन्होंंने कहा, मैं दोनों तरीकों से योगदान दे सकती हूं। मुझे एक नौकरी की जरूरत है ताकि परिवार चला सकूं।