- रफी मोहम्मद शेख
इंदौर। मप्र के गवर्नमेंट कॉलेजों में एक ओर कागजों पर पढ़ाई चल रही है, तो दूसरी ओर इन्हें पढ़ाने वालों की नियुक्ति प्रक्रिया ही अभी तक उलझन में पड़ी है। प्रदेश के कॉलेजों में तीन हजार से ज्यादा खाली पदों पर नियुक्ति होने वाली गेस्ट फैकल्टी अभी तक नियुक्त ही नहीं हो पाई है। अभी तक कोर्ट से स्टे लेकर आई गेस्ट फैकल्टी के मामले में सरकार कड़े कदम उठाने के मूड में थी, किंतु अब इन्हें नियुक्ति में प्राथमिकता के आदेश जारी कर सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान मेरिट होल्डर को हुआ है, जो अब नौकरी से बाहर हो गए हैं। उधर, बताया जा रहा है आखिरकार विभाग इनके खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ेगा और मेरिट होल्डर को ही प्राथमिकता मिलेगी।
उच्च शिक्षा विभाग ने 26 सितंबर को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशो के अनुसार साफ किया है कि पिछले सत्र में 84 अभ्यर्थी गेस्ट फैकल्टी के रूप में कार्यरत थे, किंतु उन्होंने इस बार आवेदन ही नहीं किया है। साथ ही 264 गेस्ट फैकल्टी ऐसी है, जो विभाग की मेरिट लिस्ट में चयनित नहीं हुए हैं। इनके बारे में साफ कर दिया गया है कि अगर वे कोर्ट से स्टे प्राप्त है और अभी ज्वाइन हो चुके हैं, तभी इन्हें प्राथमिकता दी जाए। अब इसमें राहत दी गई है कि अगर वे किसी अन्य कॉलेज में चयनित होकर पढ़ा रहे हैं, किंतु स्टे के आधार पर उसी कॉलेज में ज्वाइनिंग देना चाहते हैं, तो उन्हें ज्वाइन कराया जाए।
कोर्ट से स्टे लेकर कर रहे काम
उधर, यह भी साफ कर दिया गया है कि अगर पिछले साल वह फैकल्टी उसी कॉलेज में पदस्थ नहीं थी और इस बार कोर्ट से स्टे लेकर काम कर रही है, तो ऐसे मामलों में सरकार ने स्टे वैकेंट करवा लिया है, क्योंकि यह नियम केवल पिछले साल उसी कॉलेज में पढ़ाने वाली गेस्ट फैकल्टी के लिए ही लागू है। उन्हें ही पुन:नियुक्ति दी गई है। बाकी को बाहर कर दिया गया है। पिछले साल कॉलेज में काम नहीं करने वाले कई ऐसे आवेदक थे 2016 के पहले कार्यरत होने के आधार पर स्टे ले आए हैं। उन्हें अब बाहर किया जा रहा है।
न यहां के और न वहां के
सबसे ज्यादा समस्या फॉलेन आउट हुई गेस्ट फैकल्टी के साथ है। यह अब कही के नहीं रह गए हैं। मेरिट में स्थान बनाने से इन्होंने पहले से कार्यरत अपने काम को छोड़ दिया था। यह पहले किसी न किसी कॉलेज में कार्यरत थे। अब इन्हें वहां की नौकरी भी वापस नहीं मिल रही है और यहां से भी बाहर हो गए हैं। इनका सीधा प्रश्न है कि जब शासन ने स्टे के आधार पर अन्य अभ्यर्थियों को ज्वाइनिंग दे दी थी, तो फिर इसके बाद इन पदों को वैकेंट बताया ही क्यों गया और उन्हें मेरिट के आधार पर ज्वाइनिंग दी ही क्यों दी गई। अगर शासन को कोर्ट के निर्देशों का पालन करना था, तो पहले ही स्थिति स्पष्ट कर लेना चाहिए थी। इससे कम से कम उन्हें यह परेशानी तो नहीं होती।
फिर कहां मिलेगी नौकरी
अब फॉलेन आउट गेस्ट फैकल्टी को लॉलीपाप दिया जा रहा है कि उन्हें खाली पदों पर पदस्थ किया जाएगा। यहां पर प्रश्न है कि जब पिछले साल की गेस्ट फैकल्टी अधिकांश स्थानों पर पदस्थ है, तो फिर कैसे यह पद खाली होंगे और कैसे इनकी नियुक्ति होगी। साथ ही इन्हें अपने मनमाफिक कॉलेजों में भी नियुक्ति नहीं मिलेगी। इससे इस सत्र में अधिक क्वालिफाइड होने के बाद भी इन्हें वास्तविक पद से बाहर होना पड़ेगा। यह सरकार और उच्च शिक्षा विभाग की ढीली नीति का ही परिणाम है कि वास्तविक उम्मीदवार अब बाहर है।
उधर रिव्यू पिटीशन भी
जानकारी के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग ने पहले ही कोर्ट से यथास्थिति बनाए रखने के आदेश लेकर आने वाले सभी मामलों में रिव्यू पिटिशन दाखिल करना शुरू कर दिया है। अब यह सारे निर्देश सॉलिसिटर जनरल और अन्य कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेने के बाद जारी किए गए हैं। इससे साफ है कि शासन किसी भी हालत में नियमित प्रक्रिया के अधीन ही इन गेस्ट फैकल्टी की नियुक्ति करना चाहता है। अफसरों का मानना है कि मेरिट के आधार पर किए गए चयन ही अंतिम होना चाहिए।