रफी मोहम्मद शेख इंदौर। आरपीएल माहेश्वरी कॉलेज में हुई रैगिंग की रिपोर्ट पर नया पेंच आ गया है। यह रिपोर्ट मान्य नहीं होगी, क्योंकि इसे रैगिंग नहीं बल्कि अनुशासन कमेटी ने तैयार किया है। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा 2009 में जारी किए गए नोटिफिकेशन में कॉलेज की रैगिंग कमेटी में पुलिस, प्रशासन, मीडिया सहित अन्य प्रतिनिधि होना चाहिए, जबकि कॉलेज की जांच कमेटी में ऐसा कोई नहीं है। वास्तव में न केवल माहेश्वरी कॉलेज, बल्कि अन्य कॉलेजों की रैगिंग कमेटी में नियमों के आधार पर बनी नहीं है क्योंकि उन्हें नियम पता ही नहीं है।
माहेश्वरी कॉलेज ने गत दिनों अपने यहां विद्यार्थी शुभम पंवार के साथ हुई रैगिंग के संबंध में अपनी रैगिंग कमेटी से जांच करवाई थी। वास्तव में यह कमेटी रैगिंग की थी ही नहीं। यह कॉलेज की अनुशासन कमेटी थी। इससे यूनिवर्सिटी की कमेटी इसे खारिज कर सकती है। कमेटी की बैठक में इस बिंदु पर विचार भी हो चुका है। डीएसडब्ल्यू डॉ. एल.के. त्रिपाठी भी इस बात को मान रहे हैं।
प्रिंसिपल होता है प्रमुख
यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने कॉलेजों में रैगिंग से संबंधित नियम अपने अधिनियम 1956 की धारा 26(1) (जी) के अंतर्गत बनाए हैं, जो 17 जून 2009 को सभी के लिए नोटिफाई किए गए है। यह नियम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बनाए गए हैं। इसकी उपधारा 6 (3) के अनुसार कॉलेज को अपने यहां पर जो रैगिंग कमेटी गठित करना है उसका मुखिया संस्था प्रमुख यानी प्रिंसिपल होगा। उसे ही कमेटी के अन्य सदस्यों को नामांकित करने का अधिकार है। माहेश्वरी कॉलेज की रिपोर्ट की कमेटी का मुखिया न तो प्रिंसिपल है और न ही उसने रिपोर्ट पर बाद में हस्ताक्षर किए है यानी शुरुआत ही गलत है।
बेकार है यह रिपोर्ट
यूजीसी के नियमों में साफ है कि कॉलेज की रैगिंग कमेटी ही सबसे ताकतवर होगी और उनकी अनुशंसा ही मायने रखेंगी। इसके पीछे कारण पीड़ित विद्यार्थी से लेकर आरोपी और गवाह तक कॉलेज में ही रहते है और सारे तथ्य वहीं पर अच्छे से देखे जा सकते है। इसलिए इस कमेटी में पुलिस से लेकर विद्यार्थी तक को शामिल किया गया है। इस आधार पर कॉलेज की कमेटी की रिपोर्ट बेकार है और इसे मान्य नहीं किया जा सकता है। यूनिवर्सिटी की एंटी रैगिंग परीक्षण कमेटी अब कॉलेज को फिर से नई सिरे से वास्तविक कमेटी से जांच करवाने का कह सकती है। जानकारी के अनुसार कॉलेज में नियमों के अनुसार ऐसी कमेटी बनाई ही नहीं गई है।
पुलिस से मीडिया तक के प्रतिनिधि जरूरी
कमेटी के अन्य सदस्यों में पुलिस और प्रशासन से एक-एक प्रतिनिधि होना जरूरी है। वहीं, दूसरे सदस्यों में स्थानीय मीडिया से एक प्रतिनिधि, यूथ संगठनों से जुड़े गैर सरकारी संघटक का एक प्रतिनिधि के साथ ही विद्यार्थियों के माता या पिता में से एक, नए और पुराने विद्यार्थियों के प्रतिनिधि, शिक्षक और गैर शिक्षक प्रतिनिधि भी होना जरूरी है। वहीं, इसमें विभिन्न वर्गों के साथ ही लिंग के आधार पर महिला व पुरुष दोनों भी होना चाहिए। माहेश्वरी कॉलेज की कमेटी में इस आधार पर बनी ही नहीं है। जिस कमेटी ने जांच की है वो कॉलेज के प्रोफेसर्स की है और उन्होंने ही अनुशंसा कर दी है।
क्या देखती है यूनिवर्सिटी
न केवल माहेश्वरी कॉलेज, बल्कि देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के अंतर्गत आने वाले अधिकांश कॉलेजों में रैगिंग कमेटी के बारे में यही स्थिति है। वहां पर यूजीसी नियमों के अंतर्गत कमेटी बनाने के बजाय कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफेसर्स की कमेटी बना दी गई है, जो वास्तव में अनुशासन कमेटी है। खास बात यह है कि जब कॉलेज यह जानकारी यूनिवर्सिटी को भेजता है तो यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट वेल्फेयर डिपार्टमेंट इन्हें इस संबंध में सही जानकारी क्यों नहीं देता है? अगर ऐसा किया जाता तो वर्तमान स्थिति पैदा ही नहीं होती।