29 Mar 2024, 05:08:51 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुंबई। अपने संजीदा अभिनय से सबके दिलों में जगह बनाने वाले अभिनेता इरफान खान पिछले कुछ समय से न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित हैं। वे अपने इलाज कराने के लिए लंदन गए हैं। इरफान ने लंदन की अस्पताल से एक भावुक खत लिखा है और अपने संघर्ष से गुजरने के बीच अपनी स्थिति का जिक्र किया है।
 
इरफान ने इस खत में लिखा ‘इस बात को कुछ समय बीत चुका है जब मुझे पता चला कि मैं हाई ग्रेड न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित हूं। यह नाम मेरे शब्दकोष में नया है। मुझे पता चला कि यह एक दुर्लभ बीमारी है और इसके बारे में और इसके उपचार के बारे में कम जानकारी है जिसके चलते इसके ट्रीटमेंट पर संदेह भी ज्यादा है।
 
मैं इस ट्रायल और एरर गेम का हिस्सा बन गया। मैं अपने एक दूसरे ही गेम में मशगूल था, जहां मैं स्पीडी ट्रेन में राइड कर रहा था, मेरे सपने थे, प्लान थे, कुछ गोल्स थे और उम्मीदें थीं और इन कामों में मैं पूरी तरह से मशगूल था। और तब अचानक से कोई पीछे से आकर मेरे कन्धों पर थपथपा कर मुझे बुलाता है। मैं पलटकर देखता हूं तो वहां टीसी मौजूद है जो मुझसे कहता है कि तुम्हारी मंजिल आ गई है अब उतर जाओ, लेकिन मैं कंफ्यूज हो जाता हूं और कहता हूं कि नहीं मेरी मंजिल अभी नहीं आई है। यह कुछ ऐसा हो रहा है।’
 
इरफान ने आगे लिखा ‘यह जिस तरह से आया है उससे मुझे इस बात का अंदाजा हुआ है कि आप इस समंदर में तैर रहे एक कॉर्क की तरह हो जिसके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है और आप इसे रोकने की कोशिश कर रहे हो। इस भागदौड़ के बीच, मैं डरा सहमा सा अपने अस्पताल विजिट के दौरान अपने बेटे से कहता हूं, ‘मैं खुद से बस यही चाहता हूं कि इस समय में इस तरह से परेशान न होऊं और मुझे अपने पांव जमीन पर रखने चाहिए।
 
डर और परेशानी को मुझपर हावी होने नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह हालत को और बिगाड़ देंगे।’ ये मेरा उद्देश्य था और तब दर्द ने मुझे आकर दस्तक दी जैसे अब तक आप दर्द के बारे में सिर्फ जान रहे थे। कुछ भी काम नहीं कर रहा था। किसी भी तरह का हौसला काम नहीं कर रहा था और पूरी स्थिति एक जैसी हो गई सिर्फ दर्द ही दर्द से भरा हुआ था।
 
उन्होंने इस खत में आगे लिखा जैसे ही मैं अस्पताल में दाखिल हो रहा था मुझे इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि मेरे अस्पताल के अपोजिट में लॉर्ड्स स्टेडियम है जोकि मेरे बेटे के सपनों का मक्का है। इस दर्द के बीच मैंने विवियन रिचर्ड्स की हंसती हुई तस्वीर देखी और फिर ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं है और यह दुनिया मेरी कभी थी ही नहीं। 
 
अस्पताल में एक कोमा वॉर्ड भी था। एक बार अपने अस्पताल की बालकनी में खड़ा था जब इस बात ने मुझे घेर लिया कि जिंदगी और मौत के बीच बस एक रोड थी। एक तरफ अस्पताल था और दूसरी तरफ स्टेडियम और एक तरफ ऐसा था जो कभी शांत नहीं होगा, ये बात मुझे चोट पहुंचाती थी। पहली बार मुझे इस बात का अंदाजा हुआ कि आजादी क्या होती है और यह किसी जीत की तरह महसूस होती है। मानों जैसे मैं जिंदगी को पहली बार चख रहा था और इसके मैजिकल साइड को देख रहा था। ब्रम्हांड की बुद्धिमत्ता पर मेरा विश्वास बढ़ गया। मुझे लगा जैसे मैं अपने हर एक सेल में दाखिल हो गया हूं। यह तो समय ही बताएगा कि यह रहेगा या नहीं, लेकिन फिलहाल मैं कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा हूं।'
 
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