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Astrology

देवशयनी एकादशी आज, हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 12 2019 1:33AM | Updated Date: Jul 12 2019 1:33AM
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इस वर्ष 12 जुलाई शुक्रवार के दिन देव शयनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। यहीं से ज्योतिष के समस्त मंगल मुहूर्त समाप्त होंगे, सन्यासियों का चातुर्मास प्रारंभ होगा और भगवान विष्णु शयन के लिए पाताल गमन करेंगे। हरि शयनी एकादशी 12 जुलाई से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी 8 नवंबर पर्यंत भगवान का शयन काल रहेगा। इस 4 माह की अवधि में चातुर्मास आदि व्रत नियमों का पालन करते हुए नित्य विष्णु स्त्रोत सहित विष्णु उपासना का विधान माना गया है। आज एकादशी तिथि  उदय कालीन होकर संपूर्ण दिन-रात संचरण करेगी तथा गुरु का नक्षत्र विशाखा का संचरण आज एकादशी के पर्व को परम पुण्य दाई बना रहा है।
 
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। ज्योतिष की गणना के अनुसार सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये महत्वपूर्ण एकादशी आती है।इसी दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं ,और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।
 
ऐसे करें हरि शयन
देवशयनी एकादशी को अन्य एकादशीयों की भांति कृत्य करने के पश्चात देव शयन नामक पावन कृत्य भी करना चाहिए।देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः नित्य कर्मों से निवर्त होकर, स्नान कर पवित्र गंगा जल से घर  वेष्टित करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। इसके अंतर्गत  भगवान विष्णु के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें।एकादशी व्रत कथा का श्रवण करे या स्वयं ही यथाशक्ति द्वादशक्षरी मन्त्र का जप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में रेश्मी पीत वस्त्रों  से ढँके गद्दे-तकिए वाली शैया पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान का सोना रात्रि में करवट बदलना संधि काल में तथा जागना दिन में होता है। एक विशेष नियमानुसार शयन अनुराधा के प्रथम चरण में, परिवर्तन श्रवण के मध्य चरण में, तथा उत्थान रेवती के अंतिम चरण में माना गया है। यही कारण है कि आषाढ़ भाद्रपद और कार्तिक में एकादशी व्रत की पारणा इन नक्षत्रों के व्यतीत होने के पश्चात की जाती है।
 
12 जुलाई से चातुर्मास भी
देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास का भी प्रारंभ हो जाता है जो देवप्रबोधिनी एकादशी तक  4 माह का कालखंड माना गया है। ईश वंदना का विशेष पर्व है- चातुर्मास। हिंदू धर्म के अलावा जैन धर्म में भी चातुर्मास विशिष्ट पर्व माना गया है। यह चार मां साधना एवं उपासना की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने गए हैं, जिसमें संकल्प लेकर और एक स्थान पर रुक कर विशिष्ट साधना की जाती है। चातुर्मास में उपवास का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति इन 4 माह में उपवास रखता है उसके समस्त मनोरथ श्री हरि की कृपा से पूर्ण होते हैं। प्राचीन काल में जब वर्षा का अतिरेक होता था तब इस अवधि में साधु संत एक स्थान पर एकत्रित होकर इस समयावधि का लाभ उठाते हुए साधना उपासना संपन्न करते थे ,यह अवधि चातुर्मास कहलाती  थी। साधना एवं उपासना के दृष्टिकोण से यह 4 माह विशेष महत्व के माने गए हैं।
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