आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा इस बार दो दिन 23 और 24 अक्टूबर दोनों को होगी। हिंदुओं में शरद पूर्णिमा का महत्व बहुत अधिक है, जिसके कारण अभी से मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। शरद पूर्णिमा का महत्व शास्त्रों में भी बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा से निकलने वाले अमृत को कोई भी साधारण व्यक्ति ग्रहण कर सकता है।
चन्द्रमा से बरसने वाले अमृत को सफेद खाने योग्य वस्तु के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने शरीर में प्राप्त कर सकता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रोशनी यानी चांदनी में समय बिताने वाले व्यक्ति को भी चन्द्रमा से बरसने वाले अमृत की प्राप्ति होती है। चांद की रोशनी में बैठने सेए चांद की रोशनी में 4 घण्टे रखा भोजन खाने से और चन्द्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति आरोग्यता को प्राप्त करता है।
इस दिन खीर बनाकर चन्द्रमा की रोशनी में लगभग 4 घण्टे के लिए रखें। खीर किसी पात्र में डालकर ऐसे स्थान पर रखें जहां चांदनी आती हो। चाहें तो खीर को सफेद झीने वस्त्र से धककर भी रख सकते है। खीर को चांदनी से हटाने के बाद श्री लक्ष्मीनारायण को उसका भोग लगाएं। भोग लगी खीर को प्रसाद रूप में बांटें व खाएं।
बताया जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा से निकलने वाली ऊर्जा को अमृत के समान चमत्कारी माना जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा से निकलने वाली समस्त ऊर्जा उस खीर के भोग में सम्माहित हो जाती है। इसे प्रसाद रूप में लेने वाले व्यक्ति दीर्घायु होता है। इस प्रसाद से रोग, शोक दूर होते है। शरद पूर्णिमा की रात औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक हो जाती है जो रोगी के लिए लाभकारी होती है।
शास्त्रों में यह है मान्यता
शास्त्रों के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि कर पवित्र हो जाएं। शरद पूर्णिमा के दिन सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को लक्ष्मीनारायण की उपासना करनी चाहिए।