29 Mar 2024, 13:40:16 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री गणेश जब एक बार गंगा के तट पर तपस्या कर रहे थे, तब वहां तुलसी ने विवाह की इच्छा से भ्रमण करती हुई आईं। गंगा तट पर उन्हें युवा गणेश जी तपस्या में लीन दिखाई दिए। उस समय श्री गणेश समस्त अंगों पर चंदन लगाए, गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पहने और कमर पर कोमल रेशम का पीताम्बर पहने हुए रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके इस रूप को देखकर तुलसी मोहित हो गईं और उन्हें ही अपना पति चुनने का निर्णय किया। 

 
मोहित तुलसी ने विवाह की इच्छा बताने के लिए गणेश जी का ध्यान भंग कर दिया। तप भंग होने पर श्री गणेश खुश नहीं हुआ और उन्होंने ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया। साथ ही उनकी मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताते हुए विवाह प्रस्ताव भी अस्वीकार कर दिया। कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि तुलसी से शादी के लिए मना करते हुए गणेश ने कहा कि वे अपनी माता पार्वती के समान स्त्री से शादी करेंगे। 
 
रुष्ट तुलसी के शॉप पर गणेश हुए क्रोधित
गणेश के अस्वीकार से तुलसी बहुत दुखी हुई और उनको क्रोध आ गया। इसे अपना अपमान समझते हुए गणेश जी को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि गणेश का विवाह उनकी इच्छा के विपरीत होगा और उन्हें कभी मां पार्वती के समान जीवनसंगिनी नहीं मिलेगी। उन्होंने ये भी कहा कि गणेश खुद को ब्रह्मचारी कह रहे हैं परंतु उनके दो विवाह होंगे। इस पर श्री गणेश को भी गुस्सा आ गए और उन्होंने ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। एक राक्षस से शादी होने का शाप सुनकर तुलसी घबरा गई और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। तब उन्होंने श्री गणेश से माफी मांगी। गणेश जी को भी क्रोध शांत हुआ और उन्होंने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा। इस तरह शाप पूर्ण होने के पश्चात तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की प्रिय मानी जाओगी और कलयुग में जीवन और मोक्ष देने वाली बनोगी। इसके बावजूद गणेश पूजा में तुलसी चढ़ाना निषिद्ध ही रहेगा और उसमें तुलसी का प्रयोग शुभ नहीं माना जाएगा।
 
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